बिलासपुर/रायपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के मंडल संयोजक लवन सिंह चुरेन्द्र को भ्रष्टाचार के एक पुराने मामले में बड़ी राहत देते हुए बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि किसी आरोपी को केवल रिश्वत की राशि मिलने भर से दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक यह साबित न हो जाए कि उसने वह रकम जानबूझकर और स्वेच्छा से घूस के तौर पर स्वीकार की थी।
यह फैसला छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की एकलपीठ ने सुनाया। मामला वर्ष 2013 का है, जब सरकारी प्राथमिक विद्यालय के शिक्षाकर्मी और आदिवासी छात्रावास के तत्कालीन अधीक्षक बैजनाथ नेताम ने आरोप लगाया था कि छात्रवृत्ति की स्वीकृति के बदले मंडल संयोजक ने उनसे ₹10,000 की रिश्वत मांगी थी। शिकायतकर्ता ने पहले ₹2,000 एडवांस दिए और बाकी राशि बाद में देने की बात कही। इसके बाद उन्होंने एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) में शिकायत दर्ज कराई और ट्रैप कार्रवाई के दौरान आरोपी को गिरफ्तार भी किया गया।
हालांकि, जांच में सामने आया कि शिकायतकर्ता स्वयं छात्रवृत्ति घोटाले में आरोपी था, और लवन सिंह ही उस मामले की जांच कर रहे थे। उन्होंने नेताम के खिलाफ ₹50,700 की गबन की पुष्टि करते हुए वसूली आदेश भी जारी किया था। कोर्ट ने माना कि यह शिकायत बदले की भावना से प्रेरित थी।
हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि जिस छात्रवृत्ति की मंजूरी को लेकर रिश्वत मांगने का आरोप लगाया गया था, वह पहले ही स्वीकृत हो चुकी थी और संबंधित राशि भी निकाली जा चुकी थी। वहीं, ट्रैप पार्टी में मौजूद गवाहों की गवाही में भी विरोधाभास पाया गया। शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत की गई ऑडियो रिकॉर्डिंग की न तो फॉरेंसिक जांच कराई गई थी और न ही उसमें दर्ज आवाज की पुष्टि हुई।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के बी. जयाराज बनाम आंध्र प्रदेश सरकार और नीरज दत्ता बनाम दिल्ली सरकार जैसे महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोष सिद्ध करने के लिए रिश्वत की स्पष्ट मांग और उसकी स्वैच्छिक स्वीकारोक्ति आवश्यक है।
इससे पहले रायपुर की विशेष भ्रष्टाचार निवारण अदालत ने 2017 में लवन सिंह को दो साल की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने इस फैसले को खारिज करते हुए उन्हें दोषमुक्त कर दिया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि उनकी जमानत छह महीने तक प्रभावी रहेगी, ताकि राज्य सरकार यदि सुप्रीम कोर्ट में अपील करना चाहे तो उसके पास पर्याप्त समय हो।
इस फैसले के साथ ही करीब 12 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद लवन सिंह चुरेन्द्र को न्याय मिला है।
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