रिया मोदनवाल
दिल्ली / रायपुर: आमतौर पर बारिश के मौसम में नक्सलियों के खिलाफ जंगलों में मोर्चा लेना बुद्धिमानी की बात नहीं मानी जाती है. इसकी कई वजह है. छत्तीसगढ़ समेत देश के दर्जन भर से ज्यादा राज्यों में जून, जुलाई, अगस्त और सितम्बर महीने तक पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान जंगल में दाखिल होने का जोखिम नहीं लेते हैं. दरअसल, इसकी ख़ास वजह है. लेकिन इस वर्ष ऐसा नहीं होगा? केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने साफ़ कर दिया है कि पहली बार ऐसा होगा कि वर्षा ऋतु में भी सुरक्षा बल सक्रिय हैं और नक्सलियों के खिलाफ अभियान नहीं रुकेगा। उन्होंने नक्सलियों से आत्मसमर्पण करने और छत्तीसगढ़ की विकास यात्रा में शामिल होने की अपील की है। शाह ने दो टूक कहा कि 31 मार्च 2026 से पहले नक्सली सरेंडर करे, वरना उनकी खैर नहीं। राज्य में जारी एंटी नक्सल ऑपरेशन में साल भर के भीतर 400 से ज्यादा नक्सली मारे गए है, जबकि 1 हज़ार से ज्यादा संगम सदस्यों और मुख्य नक्सलियों ने आत्मसमपर्ण करना ही मुनासिफ समझा है. प्रदेश के ज्यादातर इलाको से नक्सलवाद का सफाया हो चूका है. माना जा रहा है कि डेड लाइन ख़त्म होने से काफी पहले ही कई नक्सली संगठनों की कमर टूट गयी है, उनका प्रभाव लगभग समाप्ति पर है. इस बीच रायपुर पहुंचे अमित शाह ने बड़ा ऐलान किया है. उन्होंने कहा कि इस बार बारिश में भी नक्सलियों को चैन से सोने नहीं देंगे। शाह ने कहा कि देश को नक्सल मुक्त करने की दिशा में सरकार तेज़ी से आगे बढ़ रही है.
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अमित शाह ने रायपुर में 7 राज्यों के डीजीपी, एडीजीपी एवं अन्य वरिष्ठ अफसरों के साथ बैठक कर नक्सलवाद पर विराम लगाने की अब तक की प्रगति की समीक्षा भी की। उन्होंने तमाम राज्यों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने पर जोर दिया। इस बैठक में छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश , तेलंगाना, मध्यप्रदेश, झारखण्ड और ओडिशा समेत केंद्रीय सुरक्षा बलों के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे. दरअसल,देश में बारिश का मौसम अभी तक नक्सलियों के लिए शांति का पैगाम लेकर आता था. बारिश के 4 माह पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों पर भारी गुजरती है. जबकि इस दौर में राहत की सांस लेते हुए नक्सली जंगल के भीतर ही सुरक्षित ठिकानो का रुख कर लेते है.
बारिश का मौसम जंगलों के लिए वरदान लेकर आता है. यहाँ हरियाली छा जाती है, जंगली नदी-नालों और अन्य श्रोतों में जल भराव होता है. कई कीट पतंगे और जीव-जंतु सतह पर आ जाते है. वनो में साल दर साल कटाई नहीं होने से पेड़ – पौधे अव्यवस्थित रूप से ग्रोथ करते है, उनकी शाखाए निकल आती है और आवाजाही में अवरोध पैदा करती है. पेड़-पौधों में उग आये पत्तों और हरियाली की वजह से जंगल के भीतर रौशनी की कमी हो जाती है। नतीजतन एक दूसरे को देख पाना तक मुश्किल होता है. भूमिगत कठिनाइयों और अवरुद्ध मार्गों पर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के वाहनों और अन्य सामग्री को लाना ले जाना भी कठिन होता है. यही नहीं बारिश और बाढ़ की वजह से कई इलाको का संपर्क टूट जाता है. बारिश के ये 4 माह जंगलों के भीतर दाखिल होना कम हैरतअंगेज़ नहीं होता। लिहाज़ा इस मौसम में अप्रिय वारदातों के मद्देनज़र पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान जंगलों में दाखिल होने से पूर्व कई तरह की चुनौतियों का सामना करने से भी पीछे नहीं रहते।
जानकार तस्दीक करते है कि, जंगलों में हरियाली की वजह से विजिबिलिटी में आयी कमी घातक होती है. इस दौरान ना तो फायर का पता पड़ता है, कि वह कहाँ से आ रहा है, और ना ही लैंडमाइन को खोज निकालना आसान होता है. आमतौर पर बारिश के मौसम में एंटी नक्सल ऑपरेशन को तभी अंजाम दिया जाता है जब नक्सलियों को सबक सिखाने के लिए मुठभेड़ के अलावा कोई ठोस विकल्प उपलब्ध ना हो. लेकिन इस बार केंद्र की BJP सरकार ने डेडलाइन तय कर दी है. नक्सलियों के सफाये के लिए सुरक्षाबलों को अबकी बार ख़ास निर्देश दिए गए है। जानकारों के मुताबिक बारिश के मौसम में भी नक्सलियों के खिलाफ धुआँ-धार कार्यवाही के लिए सुरक्षा बलों को तैयार किया जा रहा है. जंगल के भीतर ग्रामीण मार्गो में आवाजाही बहाल रखी गई है. मौसमी बीमारियों की चपेट में आने से बचने के लिए सुरक्षा बलों को निर्देशित किया गया है. उधर नक्सली भी जंगल में दाखिल होने के मामले में पसोपेश में बताये जाते है। इससे पूर्व वे बारिश में ग्रामीण अंचलों में ही अपने लिए सुरक्षित ठिकाने खोज लेते थे. अबकी बार ऐसे ठिकानो में भी उनकी उपस्थिति नगण्य देखी जा रही है।
रायपुर पहुंचे गृहमंत्री ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और गृह मंत्री विजय शर्मा के नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए कहा, इन्होंने नक्सल विरोधी अभियान को निर्णायक गति दी है। फिलहाल उनके ऐलान के बाद बस्तर समेत सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की बारिश में भी घेराबंदी घेरने के प्रयास तेज़ हो गए है।
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