फर्जी रिपोर्ट पर डीएम का एक्शन: ग्राम विकास अधिकारी निलंबित, जांच में खुली साजिश की पोल…

गोंडा/रायपुर: जिले की ग्राम पंचायत पहाड़ापुर में सार्वजनिक खड़ंजा उखाड़े जाने को लेकर उठे विवाद ने अब बड़ा मोड़ ले लिया है। जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने मामले की गंभीरता को समझते हुए त्वरित और कठोर कार्रवाई करते हुए संबंधित ग्राम विकास अधिकारी को निलंबित कर दिया है। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि ग्राम विकास अधिकारी ने ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव की मिलीभगत से एक निर्दोष ग्रामीण के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज कराया था।

क्या है पूरा मामला?

यह पूरा प्रकरण 14 जून 2025 को ग्राम पंचायत पहाड़ापुर में आयोजित चौपाल के दौरान सामने आया था। चौपाल में एक शिकायत आई कि गांव में कुछ लोगों द्वारा सार्वजनिक खड़ंजा (ईंट की सड़क) को मनमाने ढंग से उखाड़ा जा रहा है। जिलाधिकारी ने इस पर गंभीरता दिखाते हुए तुरंत जांच के आदेश दिए।

ग्राम विकास अधिकारी ने जिलाधिकारी के निर्देश पर थाना कटरा बाजार में इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करवाई। लेकिन इसी एफआईआर के बाद आरोपियों में से एक ने ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने साजिश के तहत शिकायतकर्ता शारदा प्रसाद शुक्ल को भी इस मामले में झूठे आरोपों में फंसा दिया।

शारदा प्रसाद ने डीएम को एक लिखित प्रार्थना पत्र देकर अपनी व्यथा बताई और न्याय की गुहार लगाई। डीएम नेहा शर्मा ने मामले की निष्पक्ष जांच के आदेश दिए। जांच के दौरान यह साबित हो गया कि शिकायतकर्ता शारदा प्रसाद को जानबूझकर फर्जी तरीके से मामले में फंसाया गया था।

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डीएम का ताबड़तोड़ एक्शन, ग्राम विकास अधिकारी निलंबित

जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद डीएम ने इस पूरे घटनाक्रम को अधिकारियों को गुमराह करने वाला बताया और ग्राम विकास अधिकारी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। साथ ही निलंबन अवधि में उन्हें विकास खंड झंझरी से संबद्ध कर दिया गया है।

इस कार्रवाई से पूरे पंचायत महकमे में हड़कंप मच गया है। डीएम ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शिता और ईमानदारी से किसी भी प्रकार की समझौता नहीं किया जाएगा।

प्रशासन देगा न्याय, दोषियों पर सख्त कार्रवाई के संकेत

डीएम ने यह भी संकेत दिया है कि मामले की तह तक जाकर दोषियों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जाएगी। ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव की भूमिका की भी गहन जांच की जा रही है।

यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि यदि आमजन प्रशासन से सीधे अपनी बात कहे, तो भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ निर्णायक कदम उठाया जा सकता है। जिलाधिकारी की यह तत्परता ग्रामीणों में विश्वास पैदा करने वाली है और अन्य अधिकारियों के लिए एक स्पष्ट संदेश भी।

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