कोलकाता/ रायपुर : कोलकाता के लॉ कॉलेज में एक छात्रा से दुष्कर्म के गंभीर मामले ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था और कानून-व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। इस केस के मुख्य आरोपियों में से एक मनोजीत मिश्रा को कॉलेज प्रशासन द्वारा नियमों को दरकिनार कर संविदा कर्मचारी के तौर पर नियुक्त किया गया था। अब यह खुलासा हुआ है कि उनकी नियुक्ति प्रक्रिया ही अवैध थी और इसमें सत्ता पक्ष से जुड़े प्रभावशाली लोगों की संलिप्तता की आशंका जताई जा रही है।
नियमों को ताक पर रखकर की गई थी नियुक्ति
सूत्रों के मुताबिक, कुछ महीने पहले जब कॉलेज के पूर्व छात्र मनोजीत मिश्रा की संविदा नियुक्ति का प्रस्ताव कॉलेज की गवर्निंग बॉडी के सामने रखा गया था, तब आठ सदस्यों में से केवल चार ने उनके पक्ष में वोट दिया था। नियम के अनुसार, किसी भी अस्थायी नियुक्ति के लिए दो-तिहाई बहुमत यानी कम से कम छह सदस्यों की मंजूरी आवश्यक होती है। बावजूद इसके, नियुक्ति को स्वीकृति दी गई।
मनोजीत के खिलाफ पहले से गुंडागर्दी, गंभीर शारीरिक नुकसान पहुंचाना और कॉलेज परिसर में यौन उत्पीड़न जैसे आरोप थे, जिसकी जानकारी गवर्निंग बॉडी के कई सदस्यों को थी। बावजूद इसके, एक प्रभावशाली सदस्य – जिसे मनोजीत कथित तौर पर “चाचा” कहकर बुलाता था – के दबाव में उनकी नियुक्ति को मंजूरी दे दी गई।
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दुष्कर्म की घटना के बाद बड़ा एक्शन
कॉलेज परिसर में छात्रा से दुष्कर्म की घटना सामने आने के बाद कॉलेज प्रशासन ने मनोजीत की नियुक्ति रद्द कर दी है। साथ ही, यह भी निर्णय लिया गया है कि उसे कार्यकाल के दौरान मिला वेतन वापस करना होगा। इस मामले में दो अन्य आरोपी – जैब अहमद और प्रमित मुखोपाध्याय, जो कॉलेज के वर्तमान छात्र हैं – को भी संस्थान से निष्कासित कर दिया गया है।
जांच का जिम्मा जासूसी विभाग को
घटना की संवेदनशीलता को देखते हुए अब मामले की जांच जासूसी विभाग (Intelligence Wing) को सौंपी गई है। इससे यह संकेत मिल रहा है कि सरकार इस पर दबाव में आकर नहीं, बल्कि जनता के बढ़ते आक्रोश के चलते कदम उठा रही है।
विपक्ष का हमला: जवाबदेही नहीं, मिलीभगत है
भाजपा के वरिष्ठ नेता और सूचना प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ के प्रमुख अमित मालवीय ने इस घटना पर कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने सीधे तौर पर तृणमूल कांग्रेस और कॉलेज प्रशासन पर मिलीभगत का आरोप लगाया। उनका कहना है कि:
“अब सवाल यह नहीं है कि मनोजीत की नियुक्ति कैसे हुई, बल्कि यह है कि इतने लंबे समय तक उसे संरक्षण किसने दिया?”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कॉलेज की गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष तृणमूल विधायक अशोक कुमार देब, सचिव नयना चटर्जी, और अन्य संबंधित अधिकारी आरोपी को संरक्षण देने में शामिल थे। उन्होंने मांग की कि इन सभी लोगों को इस्तीफा देना चाहिए और उन पर आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए।
सुकांत मजूमदार का तंज: “TMC एक कॉलेज तक नहीं संभाल पा रही”
पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार ने भी ममता बनर्जी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा:
“TMC एक कॉलेज कैंपस तक को सुरक्षित नहीं रख पा रही है। जब वहां छात्रा के साथ दुष्कर्म होता है और मुख्यमंत्री इसे ‘छोटी घटना’ कहती हैं, तो शिक्षा व्यवस्था और कानून-व्यवस्था की गंभीरता पर सवाल उठते हैं।”
जनता की नजरें अब सरकार की कार्रवाई पर
इस मामले ने न सिर्फ बंगाल की राजनीति को हिला दिया है, बल्कि सरकार की जवाबदेही पर भी सीधा प्रश्नचिह्न लगाया है। अब देखना होगा कि यह जांच निष्पक्ष रूप से आगे बढ़ती है या फिर इसे भी राजनीतिक दबाव में धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
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